
स्वर्णिम भारत का इतिहास History of India in Hindi
इतिहास क्या है…??
इतिहास शब्द हिस्ट्री यूनानी (ग्रीक) शब्द हिस्टोरिया (Historia) से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है अन्वेषणों से प्राप्त ज्ञान. इतिहास अतीत का अध्ययन है क्योंकि यह लिखित दस्तावेजों में वर्णित है.
अगर इतिहास को परिभाषित करें तो इतिहास अतीत और वर्तमान के बीच एक अनंत संवाद है.
इतिहास का विभाजन
इतिहास को 3 भागों में विभाजित किया जा सकता है.
1). प्रागैतिहासिक काल
लिखित इतिहास के पहले समय को प्रागैतिहासिक काल कहा गया है. इस समय के लोगों को लिपि और अक्षर का बिल्कुल भी ज्ञान नही था.यह आदिम लोगों का इतिहास पत्थर और हड्डियों के औजारों व उनकी गुफा चित्रकारी के आधार पर लिखा गया है. इसके काल के अनतर्गत पाषाणकाल को रखा गया है.
2). आधि- ऐतिहासिक काल
ये समय ऐतिहासिक काल से पहले का समय है, जब लिपि और अक्षर का लोगों को ज्ञान था लेकिन आज भी उसे पढ़ा नही जा सका है, क्योंकि ये लिपि चित्रात्मक और प्रतीकात्मक है जिसका अर्थ निकालना कठिन है. सिन्धु घाटी की सभ्यता और वैदिक काल को इसी काल खंड के अंतर्गत रखा गया है.
3). ऐतिहासिक काल
इतिहास का वह समय जिससे सम्बंधित लिखित सामग्री प्राप्त होती है और उसे पढ़ा भी जा सकता है, ऐतिहासिक काल के अंतर्गत आता है. भारत में यह काल 6वीं शताब्दी ई.पू. से प्रारंभ होता है.
प्रागैतिहासिक काल
मानव की उत्त्पति एवं विकास
अधिकांश विद्वानों का मत है कि आज से लगभग 10 लाख वर्ष पुर्व या इससे भी पहले प्राइमेट्स (नर मानव) से ही ऐसे प्राणी का जन्म हुआ जो मानव के सामान था. धीरे धीरे ये प्राणी वृक्षों से उतरकर अपने पिछले पैरों पर खड़े होकर चलना सीख गये और प्रथ्वी पर रहने लगे.
इनके जीवाश्म वैसे तो भारत में नही मिले हैं लेकिन मानव के प्राचीनतम अस्तित्व का संकेत संचयों में मिले पत्थर के औजारों से मिलता है, जिसका काल लगभग 250,000 ई.पू. माना गया है, लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थल से जिन तथ्यों की रिपोर्ट मिली है उनके अनुसार मानव की उपस्थिति और भी पहले 14 लाख वर्ष पूर्व रखी जाती है, पर इस विषय पर और खोज की आवश्यकता है.
अफ्रीका के बाद मानव भारत में भी बसे, हालाकि इस उपमहाद्वीप का पाषाण तकनीक मोटे तौर पर उसी तरह विकसित हुआ है जिस तरह अफ्रीका में हुआ था.
जिस काल की जानकारी के लिए लिखित और प्रमाणित साधन उपलब्ध हैं, उसे विद्वानों ने ऐतिहासिक काल का नाम दिया है तथा जिस काल की जानकारी के लिए हमें कोई लिखित या प्रमाणित सामग्री प्राप्त नही है, उसे प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है.
प्राइमेट्स क्या थे…??
प्राइमेट्स का अर्थ नर मानव है, जिसके अंतर्गत बंदरों, लंगूरों, वनमानुषों और इनके स्तनधारी जीवों को शामिल लिया जाता है. प्राइमेट्स से ही आधुनिक मानव का विकास हुआ है. ऐसे प्राणी आज से 80 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में निवास करते हैं.
प्रागैतिहासिक पुरातत्व के जनक कौन थे…??
भारत में पुरापाषण काल में सम्बंधित पुरातात्विक खोज की शुरू करने का श्रेय रोबर्ट ब्रुस फूट (इंग्लैंड) को दिया जाता है. भारतीय भू- वैज्ञानिक सर्वेक्षण के रोबर्ट ब्रुस फूट ने वर्तमान तमिलनाडु राज्य के चिंगलपुट जिला के पल्लववरम नामक पुरास्थल से 30 मई 1863 ई. को लेटेराइट मिटटी के जमाव से हस्त कुठार खोज निकाला था.
रोबर्ट ब्रुस फूट को भारत में प्रागैतिहासिक पुरातत्व का जनक कहा जाता है.
मानव की नई प्रजाति के अवशेष
दक्षिण अफ्रीका के जोहन्सबर्ग से 50किमी. की दूरी पर स्थित राइजिंग स्टार गुफा में खोजकर्ताओं ने मानव हड्डियों के प्राचीन अवशेष 10 सितम्बर 2015 को मिले हैं, इस प्रजाति को होमो नलेदी नाम दिया गया है.
शोध से जुड़े वैज्ञानिक प्रो. लो बर्गेर ने कहा है कि ये आधुनिक मानव की प्रारंभिक प्रजातियों (जीनस होमो) में से एक हो सकते हैं. ये संभवत 30 लाख वर्ष पहले अफ्रीका में रहते होंगे. कंकालों की जांच में उनकी खोपड़ी आधुनिक मानव जैसी पाई गयी है. हालाँकि उनकी मस्तिष्क की कोअरी आधुनिक मानव की तुलना में छोटी व गोरिल्ला जैसे वानरों जैसी थी. कलाई और हथेली भी आधुनिक मानव की तरह थी, लेकिन अंगुलियाँ ज्यादा मुड़ी हुई थी.
हडप्पा संस्कृति: कांस्य युगीन सभ्यता
हडप्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से भी इसलिए जाना जाता है क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हडप्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे तथा इसके आरंभिक स्थलों में से अधिकाँश सिंधु नदी के किनारे अवस्थित थे.
भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेक्जेंडर कनिंघम को माना जाता है. भारतीय पुरात्व विभाग की स्थापना का श्रेय वायसराय लार्ड कर्जन को प्राप्त है. 1921 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिदेशक जॉन मार्शल थे तब रायबहादुर दयाराम साहनी ने 1921 ई. में हडप्पा को तथा राखालदास बनर्जी ने 1922 में मोहन जोदारो की खुदाई कराई थी.
सिंधु घाटी सभ्यता कितनी पुरानी…??
वैज्ञानिकों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्या 5500 वर्ष नही बल्कि 8000 वर्ष पुरानी है. यह सभ्यता मिश्र और मेसीपोटामिया की सभ्यता से भी पहले अस्तित्व में आ चुकी थी. मिश्र की सभ्यता के 7000 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक होने के साक्ष्य मिलते हैं.
सिंधु घाटी की सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था. अब तक इस सभ्यता के प्रमाण पाकिस्तान के हडप्पा और मोहनजोदड़ो के अलावा भारत के लोथल, धोलावीरा और कालीबंगन में भी मिले थे.
सिंधु घाटी की सभ्यता का विस्तार भारत के काफी बड़े हिस्से में था जो सिंधु नदी के किनारे से लेकर लुप्त हो गयी थी. यह सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे तक बसी थी.
हडप्पा सभ्यता को अपने आखिरी चरण में ख़राब मानसून का सामना करना पड़ा था. इसी कारण से बड़े पैमाने पर लोगों ने पलायन किया और लोगों की संख्या में गिरावट आई. बस्तियों के खाली होने के बाद हडप्पा की लिपि भी समाप्त हो गई.
शोधकर्ताओं के अनुसार लगभग 7000 वर्ष पूर्व मानसून कमजोर होना शुरू हुआ था, लेकिन लोगों ने इससे हार नही मानी और अपने तौर तरीकों में बदलाव किया. लोगों ने अपने फसलों के पैटर्न को बदला और घर में पानी जमा करने के तरीकों के लिए स्टोरेज सिस्टम विकसित किये.
क्या हडप्पा संस्कृति वैदिक थी…??
कभी कभी हडप्पा संस्कृति को ऋग्वेदिक कहते हैं लेकिन इस संस्कृति की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख ऋग्वेद में नही मिलता है. नियोजन नगर, शिल्प, वाणिज्य और ईटों की बनी बड़ी बड़ी संरचनाएं परिपक्व हडप्पा संस्कृति की विशेषताएं हैं. ऋग्वेद में ये विशेषताएँ नही हैं. प्रारंभिक वैदिकजन कृषि के साथ पशुपालन करते थे, वे ईटों का प्रयोग नही करते थे.
हडप्पा संस्कृति की परिपक्व नगर अवस्था 2500- 1900 ई. पू. तक बनी रहीं, लेकिन ऋग्वेद का काल लगभग 1500 ई.पू. माना जाता है. इसके अतिरिक्त हडप्पा संस्कृति के लोगों और वैदिक लोगों को बिल्कुल समान वनस्पतियों और पशुओं की जानकारी थी, ऐसा कोई प्रमाण नही मिलता.
हडप्पा संस्कृति के लोगों को लेखन कला ज्ञात थी, उनकी लिखाई को जिसे सिंधु लिपि कहते हैं, अभी तक पढ़ा नही जा सका है. इस प्रकार हडप्पा के लोगों की भाषा के बारे में हमें स्पष्ट अनुमान नही है लेकिन प्रारम्भिक वैदिकजन हिन्दू आर्य भाषा बोलते थे जिसके भिन्न भिन्न रूप अभी भी दक्षिण एशिया में प्रचलित है.
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वैदिक संस्कृति
सिंधु संस्कृति के पतन के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का विकास हुआ उसे वैदिक अथवा आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है. भारत का इतिहास एक प्रकार से आर्य जाति का इतिहास है.
भारत में आर्यों की पहचान नार्डिक प्रजाति से की जाती है. आर्यों को लिपि का ज्ञान नही था इसलिए वे अपने ज्ञान को सुनकर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाते थे, इसलिए वैदिक सभ्यता को श्रुति साहित्य कहा जाता है.
भारतीय इतिहास में 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक के कालखंड को वैदिक सभ्यता या ऋग्वेदिक सभ्यता की संज्ञा दी जाती है.
वैदिक साहित्य के श्रोत
वैदिक साहित्य से तात्पर्य चारों वेद, विभिन्न ब्राहमण ग्रंथ एवं उपनिषदों से है. उपवेद अत्यंत परवर्ती होने के कारण वैदिक साहित्य के अंग नही माने जाते. यह वह साहित्य है जो मनुष्यों द्वारा लिखा नही गया अपितु जिन्हें ईश्वर ने ऋषियों को आत्म ज्ञान देकर उनकी रचना की है जो ऋषियों द्वारा यह कई पीढ़ियों तक अन्य ऋषियों को मिलता रहा.
पहले के 3 वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद) को वेदत्रयी कहा जाता है. अथर्ववेद इसमें सम्मिलित नही है क्योंकि इसमें यज्ञ से भिन्न लौकिक विषयों का वर्णन है.
आर्य कौन थे…??
आर्य शब्द से एक जातिविशेष को समझा जाता है और आर्यों को ही भारतीय सभ्यता व संस्कृति का संस्थापक माना गया है. आर्य शब्द संस्कृत भाषा का है, जिसका अर्थ उत्तम या श्रेष्ठ या उच्च कुल में उत्पन्न होना है. अत यह कहना अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है कि आर्य शब्द जातीयता को इंगित ना कर भाषायी समूह को इंगित करता है.
प्राचीन धार्मिक आन्दोलन
6 वीं शताब्दी ई.पू. में गंगाघाटी में जहाँ एक तरफ साम्राज्यवाद का उदय हो रहा था, एक विशाल साम्राज्य की नीव रखी जा रही थी, ठीक उसी समय अनेक नए धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हो रहा था.
जिस प्रकार साम्राज्यवादी गतिविधियों का केंद्र मगध बना, उसी प्रकार नवीन धार्मिक गतिविधियों का भी केंद्र मगध ही बना था.
इसी समय विश्व के अन्य भागों में पुरातन धार्मिक मान्यताओं को चुनौती दी जा रही थी.
चीन में कन्फ्यूशियस और लाओजे, ईरान में जारथुष्ट्र और यूनान में पाइथागोरस वाही काम का रहे थे, जो भारत में महावीर और बुद्ध ने किया. दोनों ही क्षत्रिय वंश के थे और ब्राहमानों की मान्यता को चुनौती दिए और भारत में 2 नास्तिक सम्प्रदायों का उदय हुआ.
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धार्मिक आन्दोलन के कारण
उत्तर वैदिक काल से वर्णव्यवस्था जटिल होती चली गयी. अब कर्म के आधार पर नही, बल्कि जन्म के आधार पर वर्ण का निर्णय होने लगा और समाज दो वर्गों (सुविधाभोगी और सुविधाविहीन) में बंट गया.
इस समय तक धार्मिक जीवन आडम्बरपूर्ण, यज्ञ व बलिप्रधान बन चुका था. उत्तर वैदिक काल में ही धार्मिक कर्मकांडो व पुरोहितों के प्रभुत्व के विरूद्ध विरोध की भावना प्रकट होने लगी थी जिसका आरम्भ उपनिशदों से हुआ.
जैन धर्म की स्थापना
यद्यपि जैन धर्म को संगठित व विकसित करने का श्रेय वर्द्धमान महावीर को दिया जाता है, तथापि वे इस धर्म के संस्थापक नही थे. जैन धर्म की स्थापना का श्रेय जैनियों के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव को जाता है.
जैन शब्द संस्कृत के जिन शब्द से बना है जिसका अर्थ विजेता (जितेन्द्रिय) है. जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव थे जिनका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है.
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे और गौतम गौत्र में पैदा होने के कारण ये गौतमी कहलाये. इनके जन्म के 1 सप्ताह में इनकी माता की म्रत्यु हो गयी तो बालक का पालन पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया तथा बालक का नाम सिद्धार्थ रखा जो ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध कहलाये.
बौद्ध क्षणिककवादी, कर्मवादी और अनीश्वरवादी थे और पुनर्जन्म में विश्वास थे.
शैव धर्म
शिव के उपासक शैव कहे गये और इनसे सम्बंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया. यह भारत का प्राचीनतम धर्म है और इसकी प्राचीनता आध्य इतिहास (सिंधु सभ्यता) तक जाती है, क्योंकि मार्शल ने मोहनजोदडो से प्राप्त एक मुद्रा पर अंकित मूर्ति को शिव का प्रारभिक रूप सिद्ध किया है.
शिव के प्रमुख साक्ष्य
ऋग्वेद में शिव का नाम रूद्र मिलता है जहाँ वे अन्तरिक्ष के देवता थे.
उत्तर वैदिक काल में इनका नाम शिव प्राप्त होता है. अथर्ववेद में शिव का नाम महादेव मिलता है.
लिंग पूजा का प्रथम उल्लेख मतस्य पुराण में है. महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंग पूजा का उल्लेख है.
शिव की प्राचीनतम मूर्ति पहली शताब्दी ई. में मद्रास के निकट रेनी गुंटा में प्रसिद्ध गुडिमल्लम लिंग के रूप में प्राप्त हुई है.
शाक्त धर्म
शाक्ति को इष्ट देवी मानकर पूजा करने वालों का सम्प्रदाय शाक्त कहा जाता था. शाक्ति का प्रारंभिक रूप सिन्धुकाल में मात्रदेवी की पूजा में दिखाई पड़ता है.शाक्त उपासना गुप्त काल में अपने चरमोत्कर्ष पर थी.
कल्हण की राजतरंगिणी से पता चलता है कि शारदा देवी का दर्शन करने के लिए गौड़ नरेश के अनुयायी कश्मीर आये थे. अबुल फजल भी शारदा देवी के मंदिर निर्माण का विवरण देता है.
ऐतिहासिक काल में शिव की पत्नी उमा (पार्वती) को जगत जननी कहा गया है. शाक्ति के रूप में विकसित होकर पार्वती कपिलावर्णा, काली और सिंघ्वासिनी देवी के प्रचंड रूप की पूजा कापालिक और कालामुख जैसे घोरपंथी सम्प्रदाय के लोग करते हैं.
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प्राचीन भारत में विदेशी आक्रमण
पारसी (ईरानी) आक्रमण
भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान के हखामनी वंश के राजाओं ने किया. इस वंश के संस्थापक साइरस की सेना भारत के समीप तक पहुँच गयी थी परन्तु आक्रमण असफल रहा.
कुरुष के उत्तराधिकारियों में पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता मिली थी और उसने पंजाब सिंधु नदी के पश्चिमी क्षेत्र को वजय प्राप्त करके साम्राज्य में मिला लिया. यह क्षेत्र फारस (ईरान) का 20वां प्रांत बन गया. ईरानी अभिलेखों में सिंधु को हिन्दू नाम दिया गया है.
कुछ विद्वानों की मान्यता है कि ईरानी व फ़ारसी रजत मुद्रा सिग्लोई के आधार पर ही भारत में सर्वप्रथम मुद्रा प्रचलन का कार्य प्रारंभ हुआ. फ़ारसी स्वर्ण मुद्रा डेरिक कहलाती थी और स्वर्ण मुद्रा की अपेक्षा रजत मुद्रा का अधिक प्रचलन था.
यूनानी (मकदुनियाई) आक्रमण
ईरानी आक्रमण के बाद भारत को यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर का सामना करन पड़ा. सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था, जिनसे कुछ गणतंत्रात्मक एवं राजतंत्रात्मक थे और जिनको अलग अलग जितना सिकंदर के लिए आसान था.
भारत के विजय अभियान के अंतर्गत सिकंदर ने 326 ई.पो. में बल्ख को जितने के बाद काबुल होते हुए हिंद्कुश पर्वत को पार किया. हेडास्पीज़ पोरस और सिकंदर के बीच झेलम नदी के किनारे वितस्ता का युद्ध हुआ, जिसमें पोरस की हार हुई, पर सिकंदर ने पोरस की बहादुरी से प्रभावित होकर उसके राज्य को वापस कर उससे मित्रता कर ली.
323 ई.पू. में बेबीलोन में सिकंदर का निधन हो गया. यूनानी प्रभाव के अंतर्गत भारतीयों ने यूनानियों से छत्रप प्रणाली और मुद्रा निर्माण की कला को ग्रहण किया. सिकंदर भारत में 19 महीने तक समय व्यतीत किया था.
मौर्य साम्राज्य
मगध- साम्राज्यवाद के उदय ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना का मार्ग पशस्त कर दिया. मौर्यों ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर राजनीतिक एकता स्थापित की थी. इस वंश के प्रमुख शासकों में चन्द्रगुप्त, बिदुसार व अशोक के नाम उल्लेखनीय हैं.
चन्द्रगुप्त मौर्य
चन्द्रगुप्त मौर्य, चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्दवंशीय शासक घनानंद को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में मगघ के सिंहासन पर आसीन हुए और व्यापक अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की थी.
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य सम्पुर्ण भारत में फैल गया था और जो परम्परा हर्यकवंशीय बिम्बिसार के समय आरम्भ हुई थी वह चन्द्रगुप्त के समय में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी.
चंदगुप्त मौर्य के साम्राज्य का विस्तार उत्तर-पश्चिम में हिंद्कुश से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्णाटक तक तथा पूर्व में मगघ से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक था.
चंदगुप्त जैन धर्म के समर्थक थे. जैन अनुश्रुतियों के अनुसार जीवन के अंतिम चरण में चन्द्रगुप्त ने राजकाज अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंप दिया तथा आचार्य भद्रभाहू से शिष्यत्व ग्रहण करके उनके साथ मैसूर चले गये तथा चंद्रगिरी पहाड़ी पर काय- क्लेश द्वारा 297 ई.पू. में अपने प्राण त्याग दिए.
सम्राट अशोक
अशोक बिन्दुसार के पुत्र थे. शासनादेशों को शिलाओं पर खुदवाने वाला प्रथम भारतीय शासक अशोक ही थे, जिसे शिलालेखों का जनक भी कहा जाता है. अशोक का नाम मात्र लघु शिलालेख प्रथम की प्रतिकृतियों में मिला है.
अशोक ने 273 ई.पू. में ही सिंहासन प्राप्त कर लिया था, लेकिन 4 वर्ष तक गृहयुद्ध में रहने के कारण अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ. कल्हण की राज्तारंगिनी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में श्रीनगर की स्थापना की थी.
अपने राज्याभिषेक के 8वें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और use जीत लिया. कलिंग युद्ध में हुए व्यापक नरसंहार ने अशोक को विचलित कर दिया जिसके परिणामस्वरूप उसने शस्त्र त्याग की घोषणा कर दी.
इसके बाद उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया जबकि इससे पहले वह ब्राहमण मतानुयायी था. सर्वप्रथम 1837 ई.पू. में जेम्स प्रिसेप ने अशोक के अभिलेखों को ब्राह्मी लिपि में पढने में सफलता प्राप्त की थी. अशोक की पहचान प्रियदर्शी के रूप में हुई.
स्वर्णिम भारत का इतिहास History of India in Hindi
मध्यकालीन इतिहास
भारत पर विदेशी आक्रमण
पैगम्बर मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी उमैयद खलीफा के सेनापति मुहम्मद बिन कासिम, भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम अरब मुस्लिम था जिसने सिंध व मुसलमान को 712 ई. में जीत लिया था.
सिंधु क्षेत्रों में अरबों ने सर्वप्रथम दिरहम सिक्का, खजूर की खेती व ऊंट पालन प्रारंभ किया था. पहली बार सिंधुवासियों से जजियाकर 712 ई. में मुहम्मद बिन कासिम द्वारा लगाया गया था.
महमूद गजनवी
अरबों के बाद तुर्कों ने भारत पर आक्रमण किया. तुर्क चीन के उत्तरी- पश्चिमी सीमाओं पर निवास करने वाली एक असभ्य व बर्बर जाती थी. इनका उद्देश्य मुस्लिम साम्राज्य स्थापित करना था.
महमूद गजनवी ने भारत पर 1001 ई. से 1027 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किया था. उसके आक्रमण का उद्देश्य यहाँ के धन को लूटना और विशाल साम्राज्य की स्थापना करना था.
1025 ई. में उसका सोमनाथ के शिव मंदिर पर आक्रमण सबसे प्रशिध है. उसने गुजरात के काठियावाड़ में समुद्र के किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर से भारी मात्रा में संपत्ति लूटी थी.
महमूद गजनवी ने अपना अंतिम आक्रमण 1027 ई. में आगरा के निकट भेरा के दुर्ग पर किया था.
महमूद गौरी
अफगानिस्तान में गजनी वंश के पतन के बाद गोरी काबिले ने शक्ति प्राप्त करना शुरू कर दिया. मुहम्मद गोरी इस काबिले का शासक था.
मुहम्मद गोरी ने भारत पर प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर किया. दिल्ली पर आक्रमण के दौरान दिल्ली पर चौहान वंश के प्रथ्वीराज चौहान का शासन था. मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज के बीच तराइन के दो युद्ध हुए. गोरी को ही भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.
1206 ई. में गोरी, कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत का नेतृत्व सौंपकर, वापस अपने गृहप्रांत की और जाते समय दमयक नामक स्थल पर 15 मार्च 1206 ई. को उसकी हत्या कर दी गयी.
दिल्ली सल्तनत
गुलाम वंश
दिल्ली पर शासन करने वाले सुलतान 3 अलग अलग वंशों के थे. कुत्तुबुद्दीन ऐबक ने कुतबी, इल्तुतमिश ने शम्सी व बलबन ने बलबनी वंश की स्थापना की थी. आरम्भ में इसे दास वंश का नाम दिया गया क्योंकि इस वंश का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक दास था.
कुतुबुद्दीन ऐबक गुलाम वंश के मुहम्मद गोरी का सबसे योग्य और विश्वसनीय था. ऐबक तुर्किस्तान का रहने वाला था. ऐबक का राज्यभिषेक 25 जून, 1206 को लाहौर में हुआ, लाहौर ही उसकी राजधानी थी. अपनी दानशीलता के कारण वह लाख बख्श व पील बख्श के नाम से विख्यात था.
इसने कुतुबमीनार का निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया. इसकी म्रत्यु लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते हुए घोड़े से गिरकर हुई थी. ऐबक का मकबरा लाहौर में है.
खिलजी वंश
खिलजी तुर्कों की 64 शाखयों में से एक थे. चौथी शताब्दी में ही यह शाखा अफगानिस्तान की हेललमंद घाटी में बस चुकी थी. खिलजी क्रान्ति केवल इसलिए महत्वपूर्ण नही थी कि गुलाम वंश को समाप्त कर नवीन खिलजी वंश की स्थापना की बल्कि इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप दिल्ली सल्तनत का सुदूर दक्षिण तक विस्तार हुआ.
भारत में खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था जो 70 वर्ष की आयु में शासक बना. यह दिल्ली का पहला शासक था जिसका हिन्दू जनता के प्रति उदार द्रष्टिकोण था.
सुलतान के भतीजे अल्लाउद्दीन ने देवगिरी के यादव राजा को हराकर अपार धन अर्जित किया. अल्लाउद्दीन ने गंगा नदी के तट पर 1296 ई. को इलाउद्दीन से मिलता है और उसी समय इख्तियारुद्दीन ने जलालुद्दीन का सिर काट दिया है.
21अक्टूबर 1296 को को अलाउद्दीन ने स्वंय को कडा मानकपुर में सुलतान घोषित कर दिया और दिल्ली में बलबन के लाल महल में राज्यभिषेक किया गया.
अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 ई. को कुतुबमीनार के निकट ही उससे दुगने आकार की एक मीनार बनवाने का कार्य प्रारंभ किया था परन्तु वह उसको पूरा नही कर सका.
अलाउद्दीन खिलजी को दुसरा सिकंदर कहा जाता है. वह प्रथम शासक था जिसने प्रथम बार स्थायी सेना गठित की थी और सैनिकों को नकद वेतन दिए जाने की शुरुआत की थी.
उसके दरबार में अमीर खुसो व हसन दहलवी जैसे कवी थे. अमीर खुसो ने सितार का आविष्कार किया व वीणा को संशोधित किया था. 4 जनवरी 1316 को अलाउद्दीन का निधन हो गया और इसको दिल्ली में जामा मस्जिद के बहार उसके मकबरे में दफनाया गया.
तुगलक वंश
तुगलक वंश की स्थापना गियासुद्दीन तुगलक ने की थी. दिल्ली सल्तनत के काल में तुगलक वंश के शासकों ने सबसे अधिक समय तक शासन किया. दिल्ली पर शासन करने वाले तुर्क राजवंशों में अंतिम तुगलक वंश था.
गियासुद्दीन तुगलक मंगोल को पराजित करने के कारण वह मालिक उल- गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इसने सिंचाई के साधनों विशेषकर नहरों का निर्माण करवाया तथा अकाल संहिता का निर्माण किया. सल्तनत काल में नाहर बनाने वाला प्रथम शासक भी यही था.
पिता गियासुद्दीन की म्रत्यु के बाद मुहम्मद बिन तुगलक 1325 ई. में गद्दी पर बैठा. इसे इतिहास में एक बुद्दिमान मुर्ख शासक के रूप में जाना जाता है. जब दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में प्लेग की महामारी फ़ैल गयी तो इससे बचने के लिए सुलतान को दिल्ली छोड़ कर स्वर्णद्वारी जाकर रहना पडा.
सुलतान ने दोआब क्षेत्र में कर में वृद्धि ऐसे समय में की जब वाहन पर अकाल पड़ा था और प्लेग बीमारी फ़ैल रही थी, इस प्रकार सुलतान की यह योजना विफल रही.
1327 ई. में अपनी राजधानी दिल्ली से दोलताबाद स्थानांतरित की थी लेकिन जनता इसके महत्व को ना तो समझ सकी और न ही इस प्रकार नियंत्रण रखना संभव हो सका, इसलिए यह योजना भी विफल हो गयी.
उसके अंतिम दिनों में लगभग सम्पूर्ण दक्षिण भारत स्वतंत्र हो गया था और विजयनगर, बहमनी, मुदरे स्वतंत्र राज्यों की स्थापना हो गयी थी.
मुग़ल वंश
दिल्ली सल्तनत के पश्चात भारत में मुगलवंश का शासन आरम्भ हुआ जिसकी स्थापना भारत में बाबर ने 1526 ई. में की थी. भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन के आरम्भ होते ही मुगलों की शक्ति व प्रतिष्ठा भी नष्ट हो गयी थी. 1857 ई. के विद्रोह के दोरान कम्पनी ने अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह जफ़र को गद्दी से हटा कर भारत में मुगलवंश का शासन सदेव के लिए समाप्त कर दिया.
बाबर ने भारत पर प्रथम आक्रमण बाजौर व भेरा पर किया था जिनको भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता था. बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोधी को हराया जिसमें उसने तुग्लुमा युद्ध पद्यति और तोपखाने का प्रथम बार प्रयोग किया.
खानवा के युद्ध में काँव में बाबर ने राणा सांगा को हराकर गाजी की उपाधि धारण की थी.
चंदेरी के युद्ध में बाबर ने मेदिनीराय को पराजित करके उसकी 2 पुत्रियों में से एक को हुंमायूं और दूसरी को कामरान को प्रदान किया था.
घाघरा का युद्ध बाबर का अंतिम युद्ध था जो जल और थल दोनों स्थलों पर लड़ा गया था.
30 सितम्बर 1530 को बिना किसी अवरोध के आगरा में हुंमायूं का राज्यभिषेक हुआ. अबुल फजल ने हुंमायूं को इंसान-ए- कामिल कहकर सम्बोधित किया था, हुंमायूं ज्योतिष में विश्वास करता था इसलिए उसने सप्ताह के सातों दिन 7 रंग के कपडे पहनने के नियम बनाये.
अकबर का जन्म 1542 ई. में हुंमायूं के प्रवास काल के दोरान, अमरकोट में हुआ था. सिंहासन पर बैठते ही अकबर ने बैरम खान की सहायता से पानीपत के दुसरे युद्ध में हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया.1575 ई. में अकबर ने आगरा से 36 किमी. डोर फतेहपुर सीकरी नगर की स्थापना की और उसके प्रवेश के लिए बुलंद दरवाज़ा बनवाया था.
1576 ई. के हल्दीघाटी के प्रसिद्ध युद्ध में अकबर के सेनापति राजा मानसिंह ने मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप को पराजित किया.
जहाँगीर के काल में लघुचित्र लोकप्रिय हुए. जहाँगीर की रूचि चित्रकला में इतनी गहन थी कि वह प्रत्येक चित्रकार को उसकी शैली से पहचान लेता था.
स्वर्णिम भारत का इतिहास History of India in Hindi
1757-1857 के मध्य विद्रोह
भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना के साथ ही उसका प्रतिरोध भी आरम्भ हो गया. कंपनी सरकार की राजनीतिक व आर्थिक नीतियों के परिणामों से समग्र समाज के विभिन्न वर्गों ने अनेकों बार विद्रोह किये.
इन विद्रोहों में सबसे बड़ा 1857 का विद्रोह था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम युद्ध था. 1757 से 1857 के पूर्व लगभग 100 वर्षों में भारत के किसी न किसी भाग में छोटे-बड़े विद्रोह हुए.
सन्यासी विद्रोह
प्लासी के युद्ध के बाद उपनिवेशवादी शोषण नीति से बंगाल में ब्रिटिश प्रभुत्व की स्थापना हुई. 1760 से उनके विरुद्ध सन्यासी विद्रोह आरम्भ हो गया. यह विद्रोह एक सामाजिक धार्मिक सम्प्रदाय के अनुयायियों जिन्हे सन्यासी कहा जाता था. ये सभी सन्यासी शंकराचार्य के अनुयायी व गिरी सम्प्रदाय के थे. इनके आक्रमण की निति गुरिल्ला युद्ध तकनीक थी.
यह विद्रोह बंगाल व बिहार के क्षेत्रों में शुरू हुआ जिसमें विद्रोही ईस्ट इंडिया कंपनी के माल गोदामों को लूटते थे. मूल रूप से यह एक कृषक विद्रोह था जिसमें जनता की भी भागीदारी थी.
अहोम विद्रोह
1824 में वर्मा युद्ध के अवसर पर कंपनी की सेवा असं के अहोम होकर भेजी गयी. सरकार ने युद्ध की समाप्ति पर सेना वापस लौटाने का आश्वासन दिया था, लेकिन बाद में सरकार ने अपना वचन पूरा नहीं किया तथा बर्मा के दक्षिणी भाग को अपने अधीन कर लिया. अंग्रेजों ने जब अहोम प्रदेश को भी अपने राज्य में सम्मिलित करने का प्रयास किया तो विद्रोह फूट पड़ा.
1828 में अहोम के लोगों ने गोमधर कुंवर को अपना राजा घोषित किया तथा रंगपुर पर चढ़ाई करने की योजना बनायीं, परन्तु असफल रहा और गोमधर ने आत्म-समर्पण कर दिया और उसे 7 साल की सजा सुनाई गयी.
1830 को दुसरे विद्रोह की योजना बनी और रूपचन्द्र कोनार को अहोम के लोगों ने अपना राजा घोषित किया, लेकिन ये भी गिरफ्तार जो गए और 14 साल का निर्वासन करना पड़ा.
रंगपुर का विद्रोह
भारत में ब्रिटिश शासन का आरम्भ बंगाल से हुआ इसलिए कंपनी ने भूमि व राजस्व व्यवस्था में परिवर्तन भी यही से शुरू किये. ब्रह्मपुत्र घाटी के रंगपुर में 1783 में सरकार ने लगान की राशि में वृद्धि कर दी और कढ़ाई से वसूली का प्रयास किया जिसके प्रतिरोध में विद्रोह हुआ. किसानों ने धीरज नारायण के नेतृत्व में अपना उपद्रव जारी रखा और क्षेत्र से लगान की वसूली रोकी गयी तथा शांति व्यवस्था भंग हो गयी.
धीरज नारायण को विद्रोहियों ने अपना नवाब नियुक्त किया. विद्रोह के लिए पैसे के इंतज़ाम के लिए वे खुद ही आपस में कर वसूलने लगे, अनेक विद्रोहियों को अंग्रेजों ने रंगपुर से बाहर निर्वासित कर दिया और विद्रोह शांत हो गया.
फरायजी आंदोलन
फरायजी आंदोलन उग्र समाजवादी विचार धारा से प्रभावित था जिसका जन्म 1804 में हुआ जिसके समर्थक फरायजी थे. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य मुश्लिम समाज से प्रचलित कुरीतियों को दूर करना था.
फरैजी इस्लाम धर्म के प्रतिकूल प्रथाओं को समाप्त कर इस्लाम के सच्चे सवरूप की स्थापना करना चाहते थे. वे ईश्वर के समक्ष सभी मनुष्यों को सामान मानते थे. उनकी धारणा थी कि भूमि पर ईश्वर का अधिकार है इसलिए किसी को भी लगान वसूलने का अधिकार नहीं है.
फेरजी आंदोलन 1838-1857 तक चलता रहा. फेर्जी आंदोलन द्वारा पहली बार बंगाल के किसानों को संगठित होकर सामंती अत्याचारों का सामना करने का अवसर मिला था जो एक जन आंदोलन था.
सैनिकों के विद्रोह
1778 में जब वारेन हेस्टिंग्स ने बनारस के राजा चेतसिंह पर अधिक धन के लिए दबाब डालना आरम्भ किया तो सेना ने राजा की मदद की और अंग्रेजी सिपाहियों का विरोध किया.
लॉर्ड वेलेजली ने जब अवध के नबाब वजीर अली को गद्दी से हटा दिया तब नवाब के सैनिकों ने ब्रिटिश सेना से युद्ध किया.
1844 में फिर से फिरोजपुर की 34 वीं रेजीमेंट, 7 वीं बंगाल घुड़सवार सेना, 64 वीं रेजीमेंट ने अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए विद्रोह कर दिया. इन सभी विद्रोहों को तो सरकार ने दबा दिया परन्तु असंतोष की भावना को समाप्त करने में सरकार विफल रही.
1857 का विद्रोह
एक शताब्दी से अधिक समय तक अंग्रज इस देश पर धीरे धीरे अपना अघिकार बढ़ाते ज रहे थे, और इस काल में भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों में विदेशी शासन के प्रति जन-असंतोष तथा घ्रणा में वृद्धी होती रही, यही वह असंतोष था जिसका अंतिम रूप एक जनविद्रोह के रूप में उभरा.
प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नेता
1). नाना साहब
नाना साहब पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र थे. अंग्रेजों ने उन्हें पेशवा का उत्तराधिकारी मानने से अस्वीकार कर दिया तथा उनकी 8 लाख रूपए की वार्षिक पेंशन बंद कर दी थी, इसलिए नाना साहब ने अंग्रजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया.
2). महारानी लक्ष्मीबाई
रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर 1853 ई. में म्रत्यु को प्राप्त हो गये और अपने पति की म्रत्यु के बाद इन्होने दामोदर राव नामक एक बालक को गोद लिया और पुत्र की संरक्षिका बनकर शासन-कार्य प्रारंभ कर दिया. लार्ड डलहौजी ने गोद-निषेध नियम का लाभ उठाकर झाँसी के राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जिससे असंतुष्ट होकर रानी ने बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों से युद्ध किया तथा 1858 ई. में ग्वालियर के किले में वीरगति को प्राप्त हुई.
3). रानी अवन्ती बाई
मध्यप्रदेश की सियासत रामगढ़ की रानी अवन्ती बाई ने अंग्रेजी सेना से संघर्ष करने के लिए एक सशक्त सेना का निर्माण किया और क्रांति के दौरान युद्ध में अंग्रेजों से संघर्ष किया, बाद में रानी वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गयीं.
4). मंगल पांडे
भारत की आज़ादी की प्रथम लड़ाई 1857 के विद्रोह के रूप में हुई जब गाय व सूअर युक्त चर्बी वाले कारतूस पांडे ने लेने से मना कर दिया. इन्होने अंग्रेज अधिकारी जनरल हूस्टन को गोली मार कर ह्त्या कर दी जिसके लिए उन पर कोर्ट मार्शल ने मुकदमा चला कर इनको फांसी की सजा सुनाई, वे 1857 की क्रान्ति के प्रथम शहीद थे.
सुभाष चंद्र बोस व आज़ाद हिन्द फौज
1920 में सुभाष चंद्र बोस इंडियन सिविल सर्विस में चुने गए थे लेकिन असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्होने त्याग पत्र दे दिया था. 1939 में इन्होने फारवर्ड ब्लॉक नामक एक नए दल का निर्माण किया.
द्दितीय महायुद्ध के दिनों में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कलकत्ता के एलगिन रोड स्थित निवास स्थान पर नज़र बंद कर दिया था, किन्तु ये अवसर पाकर एक पठान का भेष बनाकर भारत से भाग निकले. इसके बाद रूस और जर्मनी में हिटलर से सहायता का वचन के बाद मुक्ति सेना का गठन किया और जर्मनी में ही इन्हे नेताजी की उपाधि दी गयी.
इन्होने सिंगापुर में एक आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया जिसका उद्देश्य भारत को आज़ाद कराना था. देश को आज़ाद कराने के लिए ही इन्होने अपनी सेना को नारा दिया था “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा “.
12 नवम्बर 1941 को वे कोलकाता होते हुए बंदरगाह के रास्ते मलाया पहुंचे तथा ब्रिटिश सेना से युद्ध के दौरान वह सिंगापुर पहुँच गए. जापान ने 8 नवम्बर 1943 को नेताजी को अंडमान व निकोबार दीप सौंप दिए और इन्होने ३० दिसंबर 1945 को स्वतंत्र भारत का झंडा यहां फहरा दिया.
4 फरबरी 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया और रामू, कोहिमा, पलेल भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से ाज़ा करा लिया. आज़ाद हिन्द सेना असम में कोहिमा तक पहुँच गयी और कोहिमा पर भी तिरंगा लहरा दिया.
जापान की पराजय के बाद आज़ाद हिंद सेना ने भी अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और टोकियो जाते हुए 14 अगस्त 1945 को वायुयान दुर्घटना में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गयी.
सामाजिक व धार्मिक सुधार आन्दोलन
भारत में 19वीं शताब्दी में एक ऐसी नविन चेतना का उदय हुआ जिसने देश के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनितिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया. पुनर्जागरण का अर्थ विद्या, कला, विज्ञान, साहित्य और भाषओं के विकास से लगाया जाता है.
इसी प्रभाव से देश में धर्म व समाज-सुधार आन्दोलनों की लहरें उठने लगीं. नवजागरण में भारतीयों में राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता की भावना का संचार हुआ, जिसके फलस्वरूप लगभग 200 वर्षों के बाद देशवासी अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए और स्वतंत्र भारत का निर्माण हुआ.
आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 ई. में बम्बई में की गयी, बाद में मुख्यालय लाहौर स्थापित किया गया था. जिसका उद्देश्य वैदिक धर्म को फिर से शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास, भारत को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बाँधने का पय्रत्न और पाश्चात्य प्रभाव को समाप्त करना था.
इनके विचारों का संकलन इनकी कृति सत्यार्थ प्रकाश में मिलता है, जिसकी रचना इन्होने हिंदी भाषा में की थी. सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उन्होंने छुआ-छूत व जन्म पर आधारित जाती प्रथा की आलोचना की.
रामकृष्ण मिशन
इस मिशन की स्थापना 01 मई 1897 ई. में स्वामी विवेकानंद ने कलकत्ता के समीप बराहनगर में की थी. रामकृष्ण की शिक्षाओं का श्रेय उनके शिष्य विवेकानंद को जाता है जिन्होंने 1893 ई. में शिकागो में हुई धर्म संसद में भाग लेकर पश्चाय्त जगत को भारतीय संस्कृति व दर्शन से अवगत कराया था.
मुस्लिम सुधार आन्दोलन
अंग्रेजी शिक्षा एवं ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग के पक्ष में सबसे प्रभावी आन्दोलन का प्रारंभ सर सैय्यद अहमद खां ने किया. 1869 ई. में ये इंग्लैंड गये जिससे उन्हें स्वयं पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आने का अवसर मिला.
मुस्लिम उलमाओं ने जो प्राचीन मुस्लिम विद्या के अग्रिणी थे, देवबंद आन्दोलन चलाया जिसके दो मुख्य उद्देश्य थे.
मुस्लिम में कुरआन और हदीश की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करना और दूसरा विदेशी शासकों के विरुद्ध जेहास की भावना को जीवित रखना.
डा. भीमराव अम्बेडकर
बाबा साहब कहलाने वाले डा. अम्बेडकर प्रसिद्ध विधिवेत्ता थे जो 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद देश के प्रथम कानून मंत्री बने. भारत में दलितों, निर्बलों, गरीबों, अछूतों तथा हरिजनों के लोकप्रिय नायक अम्बेडकर ने बम्बई से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की. 1951 ई. में हिन्दू code बिल के रोके जाने के बाद अम्बेडकर ने मंत्रीमंडल से त्यागपत्र दे दिया. 1936 ई. में इन्होने इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का गठन किया. 1990 में मरणोपरांत इनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
स्वर्णिम भारत का इतिहास History of India in Hindi
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन
भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन लम्बे समय तक संचालित एक प्रमुख आन्दोलन था. इस आन्दोलन की शुरुआत 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के साथ हुई, जो कुछ उतार चदाव के साथ 15 अगस्त 1947 ई. तक अनवरत रूप से जारी रहा.
बंगाल विभाजन
20 जुलाई 1905 ई. को बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा हुई जिसके परिणाम स्वरूप 7 अगस्त 1905 ई. को कलकत्ता में टाउन हाल में स्वदेशी का आन्दोलन का जन्म हुआ.
रविन्दनाथ टैगोर के सुझाव पर सम्पूर्ण बंगाल में इस दिन को राखी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
रौलेट एक्ट
रौलेट एक्ट के द्वारा अंग्रेज सरकार जिसको चाहे जब तक बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रख सकती थी, जो कि जनता की सामान्य स्वतंत्रता का प्रत्यक्ष कुठारघात था.
इस एक्ट को बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील का क़ानून भी कहा गया. इस एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी हड़ताल करवाई गयी.
जलियावाला हत्याकांड
रौलेट एक्ट के विरोध में अनेक स्थलों पर जन सभाएं आयोजित की गयी. इसी दौरान सरकार ने पंजाब के लोकप्रिय नेता सैफुद्दीन किचलु व डा. सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया.
इसी गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में एक जनसभा आयोजित हुई, जिस पर जनरल डायर ने गोली चलवा दी जिसमें सैकड़ों लोग मारे गये.
इस ह्त्या काण्ड 21 वर्ष बाद 1940 को सरदार उधम सिंह ने लन्दन में एक बैठक को सम्बोधित कर रहे जनरल डायर की गोली मारकर ह्त्या कर दी.
असहयोग आन्दोलन
लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुए कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ. इस आन्दोलन के दौरान विद्यार्थियों ने शिक्षण संस्थायों का बहिष्कार, वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार और महात्मा गांधी ने अपनी कैंसर-ए- हिंद की उपाधि वापस कर दी.
1922 में महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ करने की योजना बनाई परन्तु उसके पूर्व ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा नामक स्थान पर 5 फरबरी 1922 को आन्दोलनकारी भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाणे के अंदर ज़िंदा जला दिया.
इस घटना से महात्मा गाँधी बहुत आहत हुए और 12 फेर्बेरी 1922 को उन्होंने ये आन्दोलन वापस ले लिया.
क्रांतिकारी गतिविधियाँ
9 अगस्त 1925 को उत्तरी रेलवे के लखनऊ- सहारनपुर सम्भाग के काकोरी नामक स्थान पर ट्रेन पर डकैती कर सरकारी खजाना लूटा. सरकार ने काकोरी काण्ड के षड्यंत में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशनलाल व राजेन्द्र लाहिड़ी को फांसी दी.
साइमन कमीशन के विरोध के समय लाला लाजपत राय पर लाठियों से प्रहार करवाने वाले सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स की ह्त्या लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को भगत सिंह, चन्द्र शेखर आज़ाद व राजगुरु द्वारा किया गया था.
23 मार्च 1931 को भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु को ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दी गयी.
ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों का भयंकर दमन किया, जिसके फलस्वरुप 1932 तक क्रांतिकारी आन्दोलन कमजोर हो गया.
भारत छोडो आन्दोलन
14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रस कार्यकारिणी की बैठक हुई जिसमें महात्मा गाँधी के संघर्ष के निर्णय की पुष्टि कर दी गयी. भारत छोडो आन्दोलन के प्रारंभ होते ही महात्मा गाँधी व मौलाना अबुल कलाम आज़ाद व अन्य शीर्ष नेताओं को ऑपरेशन जीरो आवर के अन्तेर्गत गिरफ्तार कर लिया गया.
इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ये आन्दोलन अहिंसक ना रह सका. महात्मा गाँधी को ब्रिटिश सरकार ने उनके खराब स्वास्थ्य के कारण 6 मई 1944 को जेल से रिहा कर दिया. मुस्लिम लीग ने इस आन्दोलन का समर्थन तो नही किया, लेकिन तटस्थता का रुख अपनाया.
15 अगस्त को स्वतंत्रता क्यों….??
15 अगस्त का निर्णय लार्ड माउंटबेटेन ने किया, क्योंकि वे 15 अगस्त को अपने जीवन के लिए सौभाग्यपूर्ण मानते थे. दुसरे विश्व युद्ध के दौरान 15 अगस्त 1945 को ही जापान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था.
भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता मिली और आजादी के बाद प्रथम बार आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय ध्यज ऑस्ट्रेलिया में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त सर रघुनाथ पारनइपे के निवास पर फहराया गया था.
3 जून को यह निर्णय लिया गया की 15 अगस्त को स्वतंत्रता दी जायेगी तो भारतीय ज्योतिषियों ने इस पर आपत्ति व्यक्त की थी. उनके अनुसार यह देश के लिए अमंगल होगा.
लेकिन लार्ड माउंटबेटेन तो इसी दिन के लिए अडिग थे, इसलिए ज्योतिषियों ने कहा कि स्वतंत्रता का समय 14 अगस्त रात 12 बजे हो, क्योंकि भारतीय मान्यता के अनुसार अगले दिन सूर्योदय से दिन आरम्भ माना जाता है, इसलिए 15 अगस्त के अशुभ दिन से बचा जा सकेगा और अंग्रेज यह मानते थे कि रात 12 बजे से दिन बदल जाता है, इस प्रकार लार्ड माउंटबेटेन की राय भी मानी जा सकेगी.
भारतीय संविधान का विकास
26 नवम्बर 2015 को भारत में प्रथम संविधान दिवस मनाया गया. 29 अगस्त 1947 को संविधान का प्रारूप तैयार करने वाली समिति की स्थापना हुई थी और इसको पारित करने में 02 वर्ष 11 महीने व 17 दिन लगे.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के 284 सदस्यों ने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किये थे और 26 जनवरी 1950 को इसे लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस और 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है.
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उम्मीद करता हूँ आपको “स्वर्णिम भारत का इतिहास History of India in Hindi” आयेगा.
Thanks a lot to be BusinessBharat Blog reader….
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Thanks for sharing useful post
संंक्षेप में भारत के सम्पूर्ण इतिहास से परिचय करा दिया आपने, आभार।
aapne to short mein pura itihas hi samjha diya itna short to kisi mein bhi nahi milega